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saurabh manchanda

Drama

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saurabh manchanda

Drama

यतीम

यतीम

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अक्सर हमने सुना है, देखा है

एहसासों के अभाव से

रिश्तों को यतीम होते हुए

कोई नाम ना मिल पाने की वजह से

अपना वजूद खोते हुए

क्या मगर कभी एहसास भी

खुद को यतीम महसूस करते होंगे

आअों मिलते हैं ऐसे ही यतीमखाने से

जहाँ चंद विस्मृत एहसास गुज़र बसर करते हैं


खुशी जिसे हँसी कहकर

लब बहला ना सके

वो रंज जिसे पलकें मिलकर

अश्कों में पिघला ना सकीं

इश्क जो किसी भूख की

सूली पर लटक गया

आक्रोश जो अपनी ही

प्यास से भटक गया

शायद इंतज़ार की मारी उम्मीदों का

इंतज़ार अब भी कायम हो


वो तारीफ जिसे कभी

दिल ने ना गवारा किया

वो रश्क जिसे कोलाहल मे

खामोशियों ने आवारा किया

शायद एतबार की मारी उम्मीदों का

एतबार अब भी कायम हो


चलो इनमें से किसी एहसास को

हम सही मायनों मे अपना लें

ज़रा जल्दी कहीं इन्हें पहचान

देने का हमारा ये एहसास भी

ना यतीम हो जाये !


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