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Vivek Sehgal

Tragedy

4.5  

Vivek Sehgal

Tragedy

यशोमति की विडंबना

यशोमति की विडंबना

2 mins
265


उर्ग्र हो आया अर्क सुधा का, गिरिराज रहे कपाट खोल 

मैं घटता जाऊँ देख सांवरिया, कभी तू मुझसे बोल !

बहती यमुना तट से पूछे, कबन हुई यह भोर ?

आवेग से वंचित, पथ से भ्रमित कण-कण मांगे छोह। 

मूर्छित हो घाट पर बैठे कितने पथिक अंधेरों में,

इनके मन को डस गए दीपक उजले हुए सवेरों में। 

सारंग भी खंडित मूरत सी अभिलाषा बाँधे रह गए,

सावन भी बीते बिन बादर के, वन भी सूखे रह गए,

जो पंछी बन उड़ता जाये वो अश्रुओं का नीरद है,

यह बहता अनंत आकाश में मानो वैरागी शिव वारिद है,

उद्धव हर घर ठोकर खाये, पूछे नन्द का वास कहाँ भये?

तेजहीन जन गण को मिलकर लिए चले मन में विस्मय,

'एक नदी चली जो कृष्ण-श्वेत नन्द के घर से आती है'

सुन उद्धव अचंभित हो आये, 'यह आवाज़ कहाँ से आती है ?"

पाकर दृश्य इस रमणीय नदी का, उद्धव ठुमकते जाते हैं,

अंत में नन्द का घर देख झिझक से पीछे हो जाते है ,

नदी में एक रिंगन था, जैसे गर्भ में भ्रूण,

नदी में एक गुंजन था, जैसे गर्भ में भ्रूण,

कपाट खुले तो भय से युक्त नन्द सामने खड़े मिले,

पाकर उद्धव का मुखारविंद, मुख से उनकी निकली 'हाय'

उद्धव ने खत दिखाया, चहचहाकार कृष्ण का पत्र सुनाया,

'में सबसे अभागा हाय, जिसका पुत्र ही नहीं मुड़कर आया?'

उद्धव का सब साहस टूटा, जब यशोदा प्रकट हुई,

माना के कृष्णा होगा, पर उद्धव से जब भेंट हुई,

तब अश्रु की तार टूटी और काजल का प्रवाह हुआ,

जा मिला वो नदी में जैसे-जैसे उनके संचार बढ़ा,

करुणा और वात्सल्य से भर आयी झोली जब यशदोहा की,

भर कर दुग्ध वक्ष में अपने नदी में श्वेत धार बही,

उद्धव पूछे क्यों आँखों में विषाद की रेखा रखी है?

कहे यशोमति आँचल पकड़े, 'नसीब में विफलता लिखी है!' 

  



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