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DR ARUN KUMAR SHASTRI

Classics

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DR ARUN KUMAR SHASTRI

Classics

योग भोग अरु रोग

योग भोग अरु रोग

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दुआएं मिल रही सबकी, आपके एहतराम का शुक्रगुज़ार हूँ 

पानी का बुदबुदा हूँ महज मैं तो, दोस्तों आपका मेहरबान हूँ


और कहूँ तुमसे कर्म की कलम का, अदना सा सिपहसालार हूँ 

सीखता रहता हूँ जगत से हर पल, लिखता यूँ तो हज़ार बार हूँ 


पसंद आये न आये या किसी का दिल दुखाए ऐसी तो आदत नहीं 

भूल से कोई भूल हो जाए तो, आपकी मुआफ़ी का तलबग़ार हूँ 


चाहता हूँ कहाँ मैं कब के मेरे शब्द, किसी को शूल सा भेदन करें 

सिखा देना गिला देना उसी पल पकड़ कर कान मेरे जो गुनहग़ार हूँ 


मुझे मालूम हैं पक्का के, आपसी खूबियां इस नाचीज़ में हरगिज़ नहीं 

लगा हूँ जन्म से ही सीखने को लेकिन आदतें मेरी बदलती क्यों नहीं 


मैं सजदे में हूँ हर पल समझने को, लगा ज्ञान प्राप्ति की जुगत में हूँ 

समय जितना भी मिलता है दुनिया के फ़ज़ितों से शर्मसार भी तो हूँ।


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