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Vivek Mishra

Abstract Drama Inspirational

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Vivek Mishra

Abstract Drama Inspirational

यकीन

यकीन

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किसी की बात का तुमने कब यकीं रखा है 
तुमने भी आस्तीनों में कुछ तो छुपा के रखा है।

जो हँसी में टाल देते हो हर सवाल मेरा,
निगाहें कह रही हैं कुछ तो दबा के रखा है।

कभी लफ़्ज़ों में, कभी ख़ामोशियों में छलके,
दिल के किसी कोने में जो दर्द सजा के रखा है।

बहाने लाख बनाओ, पर सच छुपा न सकोगे,
चेहरे की शिकन ने ही ये राज़ बता के रखा है।

चमकते चेहरों के पीछे अंधेरे क्यूँ समाए हैं?
तेरी आँखों ने जाने क्या समुंदर बहा के रखा है।

कभी जो खोलोगे ये गिरह अपने दिल की,तो तुम
देखना कि हमने भी कुछ हौंसला जुटा के रखा है।

मुझे बताओ तो सही, किस डर में जी रहे हो?
हमने भी हर मौसम एक दिया जला के रखा है।

तू जितना छुपाएगा, उतना ही गहराएगा ये राज ए इश्क़
ये वो एक आग जिसने सबकुछ राख बना के रखा है।

तू रौशनी की तलाश में फिरता रहा, मगर
अंदर किसी कोने में एक अंधेरा बसा के रखा है।

तू पास है लेकिन साथ कोई साया भी नहीं,
क्या आपने अंदर कोई शख़्स दबा के रखा है?

बदन तेरा साँसों से आबाद है, ऐ दोस्त मगर
तुमने रूह को कबसे ख़ामोश बना के रखा है।


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