"नई दुनिया"
"नई दुनिया"
इन सभी उलझनों और परेशानियों से दूर,
एक अलग सी नई दुनिया बसाना चाहता हूँ मैं,
भुलाकर सारे रंज-ओ-ग़म,
एक बार फिर से मुस्कुराना चाहता हूँ मैं।
वो नई दुनिया सच्ची होगी, ना कोई फ़रेब होगा,
हर तरफ़ खुशहाली ना कोई ऐब होगा,
जहाँ सब ठीक होगा,जहाँ सब सही होगा,
जाति, धर्म, ऊँच, नीच ना कोई लिंगभेद होगा,
होंगी खुशियां चारों ओर ना कोई खेद होगा।
जहाँ सारी नाराज़गी मुस्कुराहटों में बदल जायेंगी,
रिश्तों में जमी बर्फ़ की चादरें पिघल जायेंगी,
जहाँ कोई लाचार मायूस ना रहने पायेगा,
मां की ममता से वंचित, कोई मासूम ना रहने पायेगा,
जहाँ कोई भी अपने मन की बात कह सकता है,
जहाँ बेटा पिता के साथ बनकर दोस्त रह सकता है,
जहाँ किसी की ख्वाहिशों पर ना कोई रोक टोक हो,
हर तरफ हो शान्ति, ना कोई नोंक-झोंक हो,
जानता हूँ मेरी चाहतें कुछ अलग हैं, अजीब हैं,
पैसे वाले बहुत यहाँ, दिल के सब गरीब हैं,
खाई बहुत ठोकरें, अब संभल रहा है 'रवि',
जाने ये बदलाव की कैसी आग है, जिसमें जल रहा है 'रवि'।।
