सज़ा
सज़ा
साथ चलने पर अब सज़ा मिलती है,
हर कदम पर एक नई खता मिलती है।
मुफ़लिसी में यहां कौन दोस्ती करता है,
मुफलिसी में यहां दोस्ती कहां मिलती है।
जो ख्वाब वफाओं के आँखों में सजाते हैं,
उनको जागती आँखों की सज़ा मिलती है।
ना चाह कर भी जो बोलते बस सच हैं,
उनको बदले में नफरत की दुआ मिलती है।
जिनके दिल में अभी मोहब्बत बाकी है,
उनको हालातों से बस जुदाई मिलती है।
खुदा भी खामोश है आज के दौर में
शायद, उसको भी रहबरी की सजा मिलती है।
जो उम्मीदें लेकर उजाले जलाते हैं,
उनको हर तरफ़ से बस हवा मिलती है।
