आईना झूंठ कहता है-दो शब्द
आईना झूंठ कहता है-दो शब्द
आजकल
जब तुम चुपके चुपके देखती हो आईना
चमकती श्वेत लट,
पेशानी पर हल्की सी लकीरे देख कर
एक पल ठिठक जाती हो --
न जानें क्यों
उम्र की देती हुई दस्तक पर कुछ सहम जाती हो-
यही है आईना
जो तुम्हारे नशीली चितवन
लरजते होठों और चांद से चैहरे को देखकर अंदर से चटक जाता था-
लेकिन
सत्य को कहां झुठला पाता था-
उथले पानी में
अक्सर कीचड़ होता है
कौन नहीं जानता जीवन की सच्चाई को-
आईना भला कहां मांप पाता है
अंदर बहते हुए शीतल पावन झरने की गहराई को-
कौन कहता है कि
उम्र की दरिया में बह कर तुम कतरा कतरा बिखर गयी हो--
मेरे दिल से पूंछो
उम्र की अग्नि में, अनुभव और अहसासों चोट से कुंदन सी निखर गयी हो-
आज भी
जब झांकोगी मेरे दिल-ए-आईना में
तुम्हारे अंदर
प्रेम, विश्वास, निश्कलंक सुंदरता का
स्निग्ध, शीतल, मधुर दरिया बहता है-
तुम आज भी उतनी हसीन हो
मेरी नजरों में,
यह आईना कहां झांक पाता है
तुम्हारे अंतर्मन को
सच तो यह है
यह आज भी तुम्हारे हुश्न से जलता है
इसलिये झूठ कहता है।