यज्ञ प्यार का
यज्ञ प्यार का


हर दिन, हर पल करती हूं यज्ञ में ,
हवन - कुण्ड में तेरी यादों की आहुतियां डाली कर
आंसुओं का डाला घी , तन को जलाया
हवन - कुण्ड की लकड़ी बना कर ।
जो की थी तुमने मुझसे वो प्यार भरी बातें ,
तेरे उन शब्दों को बनाया मंत्र मैंने
बढ़ी जब त्रिशनगी शबे- हिज्रा में तो
तारे भी नज़र आने लगे हवन की जलती लपटों से ।
भड़की जो ज्वाला तेरी यादों की ,
छुअन तुम्हारी का एहसास दिला कर ,
स्वाहा कर गई मुझे ।
तुम्हारे प्रेम सुधा रस का प्यासा हृदय ,
चाह इन अधरों को तुम्हारे अधरों का चरणामृत पीने की ,
बना लो जो अपने प्यार के हवन -कुंड की समिधा ,
यज्ञ की पूर्णाहुति से मिल जाए चिर शांति ,
धधक कर तुम्हारे प्यार की आहुति में हो जाऊं स्वाहा ।
चुप रह कर ही मोहब्बत निभाई मैंने जला कर अपने मन को हवन कुण्ड में ,
बस और ना अब सहन होगा ,
लगता है खुद ही जल जाऊंगी मैं इस हवन कुण्ड में ,
तब होगा संपूर्ण यज्ञ मेरे प्यार का ।