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Ritu Garg

Abstract Others Children

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Ritu Garg

Abstract Others Children

यह कैसा दौर है

यह कैसा दौर है

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ये कैसा दौर है

यह कैसा दौर है ,चारों ओर शोर है ,

इंसा की कीमत नहीं, आज कहीं ओर है।


दुखता है दिल यहां, रोती है आंखें यहां,

पग पग पर होती है परीक्षाएं भी यहां।


नहीं आंसुओं की कीमत, दर्द चारों ओर है,

मिलते है चोर डाकू, देखो हर मोड़ है।


सहन शक्ति और आदर्शों का शोर है,

दिलों के भीतर देखो, पाप चारों ओर है।


अच्छाई दिखती नहीं, यहां किसी छोर है,

आंखों में लाज शर्म, आज नहीं ओर है ।


मिलते हैं हंस कर, पीछे रुलाता हर कोर है,

होंठों को सीता नहीं, जमाना किस ओर है।


सूखे हैं खेत यहां, सूखे खलिहान है,

पनघट पर अब नहीं, जाता कोई ओर है।


प्यासी है आंखें और, दिल रोता तार-तार है,

जर्रे जर्रे में देखो, बेवफाई हर ओर है।


ये ऐसा

दौर है इंसान गिरे तो, हंसी चहूं ओर है,

मोबाइल गिरे तो दिल होता चकनाचूर है।



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