यह जमाना और है
यह जमाना और है
वह जमाना और था यह ज़माना और है।
जिंदगी में हर तरफ नाकामियों का दौर है।
लू चले है हांफती चिड़िया खड़ी सूखी नदी में।
गुबार भरी गर्मियां हैं यहां आंधियों का शोर है
वह जो बरगद कल तलक पहचान था गांव की।
कट गया ,उड़ गए पंछी , वीरनियों का दौर है।
गूंजते थे बोनी में कभी गीत तब हर खेत में।
आज न हल का पता न पायलों का शोर है।
भाईचारा भूल कर सब रंग गए शहरी रंग में।
अजनबी सा हो गया ये गांव भी कोई और है।