यह चलन कैसा
यह चलन कैसा
जज़बात नहीं तो जुनून कैसा?
रात नहीं तो यार सुकून कैसा??
यह अजीब ही है,
यह चलन कैसा?
तू मुझे भूल जा,
या मैं तुझे भुला दूं,
प्यार में ऐसा नहीं होता है,
इश्क़ होता है दगाबाज़,
यह तू समझ ले,
प्यार विश्वास होता है।
वह क्यों नहीं हुआ,
तेरी जिंदगी का तलबगार,
बहुतों का तबीब बना,
न कभी किया एतबार।
ऐ दिल तूने तो इस जिंदगी को जीना सिखाया है,
फिर क्यों तेरी जुबां पर रुखसत का नाम आया है।
हो सके तो समझाने की कोशिश में तू यार मुझे गुमराह न कर,
हो सके तो हमें समझ और मेरे हालात पर एतबार कर॥