STORYMIRROR

Surya Rao Bomidi

Abstract Tragedy

4  

Surya Rao Bomidi

Abstract Tragedy

ये वक़्त भी गुजर जाएगा

ये वक़्त भी गुजर जाएगा

1 min
230

हर तरफ हाहाकार, चीख पुकार 

देखो जिंदगी भी कितनी परेशान है


चार कंधे नसीब न हो जिसकी किस्मत में

अपने आप सर्वशक्तिमान समझने वाला

अर्थी पर ये वही इंसान है


बंदिशों में जीवन है, कहीं 144 धारा

तो कहीं कर्फ्यू की मार है


फिर भी हर पल भय से जी रहे हैं सभी

कोई अनाथ, कोई बेसहारा,


कई मांगे सूनी तो कहीं सड़क पर तड़पती जान है

कितना मजबूर कितना असहाय ये इंसान है


किसी को किसी पर यकीन नहीं 

ऊपर वाले के होने पर भी एक सवाल है


पता नहीं जिंदगी कहां छुपी बैठी है

यहां तो अस्पताल, दवाई का पता नहीं,

प्राकृतिक हवा भी अपने फ़र्ज़ से अंजान है


ये वक़्त भी गुजर जाएगा ऐसा एक विश्वास है

आज कोई पराया नहीं सब अपने है


लाख मतभेद हो विचार भेद हो

हमारा एक देश है हम एक जान हैं


लापरवाही से बचिए सरकार की मानिये

रिश्ते बचेंगे आप बचोगे, सर्वोपरि देश बचेगा


देश है तो हम आप हैं हम हैं तो देश है

सबसे ऊपर "जान है तो जहान है"


मास्क, भौतिक दूरी यही है आज की सच्चाई

लेनी होगी दवाई तो साथ ही होगी कड़ाई।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract