ये शहर
ये शहर
जब से हुआ
है प्रवेश
मेरा इस शहर में
तब से फंस
गया हूं
मैं एक
चक्रव्यूह में।
कर रहा हूँ
तलाश तरीका
अपनाने का
साम-दाम
दंड-भेद का।
आदमी हर
इस जगह में
लगा हुआ है
एक
विचित्र सी
उधेड़ बुन में।
गलियां जैसी
हैं इस शहर की
सिमटी हुई
वैसे ही
संकरे इनके
मन के विचार हैं।
हर कोई
किसी के
जीवन में
कतराता है
प्रवेश करने से।
आता है
अपने रास्ते और
अपने ही रास्ते
चला जाता है।