ये जंगल की बेटियाँ
ये जंगल की बेटियाँ
पथ कँटीली हो या गीली हो
बस चल पड़ती
कुछ न विचारती
बच्चे को पीठ के बेंतरा में बाँधे
रूकतीं नहीं, अनवरत चलती है
ये जंगल की बेटियाँ
दूर पँकीली राहों से
शीतल जल लाते-लाते
जीवन इनका पानी सा बहता है
फिर भी थकी कभी नहीं
रूकी कभी नहीं
सदा रही चलती जीवन भर
तप्त धरा की प्यास बुझाने
स्वयं में तपकर
है खुद कुंदन सी खिलती
कुसुम सी लचीली
कुसुम सी अलबेली
बन गई खुद पाषाण नवेली
मन रह गया कुसुम सा कोमल
तन की गाथा एकदम अलबेली
तन की नैया खेते-खेते
सुघड़, सयानी, गज़ब ढाती है
पहाड़ी से भी हुई ऊँची,
हुई बड़ी है ये
जंगल पठारों पर
दौड़ लगाती
पत्थर इन्हे कहाँ कब रोक पाया है
पगडंडी के रोड़े मन भाया है
ठोकर पे है इनके जमाना
है हमेशा आना और जाना
श्रमरत जीवन में इतना ही जाना है
सरल ज़िंदगी, सरल परिभाषा,
अनवरत कर्म, अनोखी आशा
रखती सजाए दिलों में अपने
बहुत सरल, बहुत भोली
होती है
ये जंगल की बेटियाँ!
