यादों की परछाईं !
यादों की परछाईं !
कमबख़्त तू जहाँ न होती,
तेरी याद वहाँ ज़रूर होती।
कुछ ऐसा सम्बंध,
मालूम पड़ता है तुम्हारा,
धूप के साथ परछाईं का सहारा।
कुछ पल हँसा,
लमहे रुला जाते हैं।
पल पल मुझे,
क्यूँ ये तड़पाते हैं।
कुछ तो दिखा मुझपे रहम,
ढा ना और मुझपे सितम
आ इस बार, तो रुक ही जा
परछाईं यादों, की साथ न ला।

