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डॉ.निशा नंदिनी भारतीय

Abstract

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डॉ.निशा नंदिनी भारतीय

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यादों का जमघट

यादों का जमघट

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लगभग चार दशक पुराने 

दस बाइ बारह के इस कमरे में

यादों का जमघट जमा है। 


गाहे-बगाहे मस्तिष्क जब 

खंगालता है इसके हर कोने को

तो कहीं दिखाई देती है

दबी हुई चीख... 

तो कहीं हंसी का फव्वारा 

फूटा पड़ा है। 


कहीं जतन से सहेजे 

स्वप्न बिखरे पड़े हैं... 

तो कहीं अपनो का लाड़ छिपा है

मेहनत की महक गमक रही है.. 

पृष्ठों को उलट-पुलट रही है। 


जवानी का जोश, बुढ़ापे का कदम 

खुशी से मिल रहे हैं गले

पूर्णिमा की चांदनी 

अमावस्या के अंधकार से 

गुपचुपा रही है। 


यादों के बसेरे में हर ओर 

सांस ले रहे हैं नव-रस

हर दीवार कुछ सुन-बोल रही है। 

कुछ उधेड़ रही है 

कुछ बुन रही है। 



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