शहरीकरण
शहरीकरण
मैं ग्रामीण भोला-भाला
मेहनत कर अन्ना उगाता हूँ।
खून-पसीना करके एक
दो निवाले खाता हूँ।
ना जानू मैं नियम कानून
मौजूं में अपनी रहता हूँ
हरा खेत है शान मेरी
आकाश तले मैं सोता हूँ।
स्वराज काज को छोड़-छाड़
गुलामी को उत्सुक समाज।
शहरीकरण का विकट जाल
उलझा रहा कोठर काल।
शूल से मैं प्यार करता
फूल को भी मैं उगाता।
मैं ना जानू हीरा-पन्ना
खेत की माटी है सोना।
पशुधन है पास मेरे
यही राम बलराम मेरे।
नाम मेरा है हलधर
चक्रधर कुटिया में मेरे।
स्वराज काज को छोड़-छाड़
गुलामी को उत्सुक समाज।
शहरीकरण का विकट जाल
उलझा रहा कोठर काल।
मन मेदिनी का मैदान
बंजर होता खेत खलियान।
इच्छाओं का माया-जाल
उलझ रहा बेसुध इंसान।
भूलकर गांव की माटी
डस रहा लालच का नाग।
छोड़कर प्राकृतिक सुख
गा रहे सब झूठे राग।
स्वराज काज को छोड़-छाड़
गुलामी को उत्सुक समाज।
शहरीकरण का विकट जाल
उलझा रहा कोठर काल।
