युग पुरूष
युग पुरूष
अति अल्प है जीवन अपना
इसकी क्या चिंता करना।
समर्पित कर मातृभूमि को
कफन ओढ़ निकल पड़ना।
मत सोचो जीवन पथ पर
सुकोमल पुष्प मार्ग मिलेगा।
साथी बना शूल को अपना
कभी न कंटक पग लगेगा।
जीवन की जीत-हार पर
तुम क्यों हंसते-रोते हो।
क्षणिकाओं में उलझकर
क्यों तुम लक्ष्य खोते हो।
प्रभु मूरत रख अंतर्मन में
निर्भय हो कर्म करते जा।
चिंतन अपने रिपु का छोड़
सुकर्म पथ पर बढ़ता जा।
जीवन जीते सम रहकर
अंत समय मुस्कुराते हैं।
धरती का कर्ज चुका कर
युग- पुरुष बन जाते हैं।
