याद
याद


ढ़लती सांझ और चांदनी टिमटिमाने लगी है,
आज़ फिर किसी की याद आने लग़ी है,
वही किनारा, वही रेत और लहरों का आना,
छूके पैरों यादों का मनही मन मुस्कुराना,
आज़ वही लम्हें सांझ दोहराने लगी है,
आज़ फिर किसी की याद आने लग़ी है,
अब ऐनक ढ़लता सूरज नहीं दिखा पाता,
रेत बैठे बैठे मैं मन ही मन मुस्कुराता,
राह चलते को, मुझे देख़कर हंसी आने लगी है,
आज़ फिर किसी की याद आने लग़ी है।