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PIYUSH NAVEEN BAID

Abstract

4.6  

PIYUSH NAVEEN BAID

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व्यापारी की दास्तान

व्यापारी की दास्तान

2 mins
446


कड़क धूप हो या सनसनाती ठंडी 

जमकर बारिश हो या ख़तरनाक तूफ़ान 

मुझे तो घर चलाना होता है 

मुझे तो दुकान दफ़्तर जाना होता है। 


बुख़ार में सिलग़ों या बदन से बिखरूँ 

हर ग़म हर दर्द दवाई से भगाना होता है 

क्यू की मुझे घर चलाना होता है 

मुझे दुकान दफ़्तर जाना होता है। 


साल के ३६५ दिन बिना रुके बिना थमे 

हमें तो दिमाग़ खपाना होता है 

परिश्रम कर घर जाना होता है 

क्यू की मुझे घर चलाना होता है 

मुझे दुकान दफ़्तर जाना होता है। 


दिनो दिन निकल जाते है बचे कब बड़े हो जाते है 

परिवार की ज़रूरत पूरी करते करते

हमें ज़िन्दगी फूंक जाना पड़ता है 

Q की मुझे घर चलाना होता है 

मुझे दुकान दफ़्तर जाना होता है। 


कर्मचारी का वेतन हो या 

समान का पेमेंट हो 

सबको टाइम पे देके हमारा गुडविल बचाना होता है 

क्यू की मुझे घर चलाना होता है 

मुझे दुकान दफ़्तर जाना होता है। 


हर दिन एक नई सोच अपनाना होता है 

कभी नरमाई कभी गरमाई से आगे बढ़ना होता है 

चिंता के आलम में दिमाग़ का संतुलन बचाना पड़ता है 

क्यूँकि मुझे घर चलाना होता है

मुझे दुकान दफ़्तर जाना होता है। 


ना त्यौहार ना छूती सब कुछ भूल के 

दुकान दफ़्तर जाना पड़ता है 

क्यूँकि मुझे घर चलाना होता है। 


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