व्यापार
व्यापार
लोक व्यवहार,
बड़ा व्यापार ,
इसी से चलता ,
रिश्तों का बाजार।
व्यवहार मनुष को ,
काबिल बनाये ,
वो दिन दूनी रात चौगुनी ,
तरक्की करता जाए।
नेग बने,
सिर्फ रिवाज़ ,
ज़िन्हे पूरा करे ,
ये समाज।
व्यवहार की है,
बात निराली,
जो इसको समझे ,
उसके लिए ताली।
पुरानी कहावत ,
कितनी चरितार्थ,
लोक व्यवहार,
नेग रिवाज़।
