व्याकुल प्रकृति कहे
व्याकुल प्रकृति कहे
चिंता नहीं किसी की भी नहीं कोई परवाह
कर्म बुरे करके करते अच्छे फल की चाह
एक हाथ से जस करें, पाएं दूजे हाथ
कर्म करेंगे जैसे भी, फल वैसे देंगे नाथ
व्याकुल प्रकृति कहे , बूझे न इंसान
आनेवाली आपदा से मानव अंजान
बने उपस्कर वृक्ष से , बने पेड़ से खाट
शहर बसाए तो बड़े , दिया वनों को काट
मौसम और जलवायु का हरदम यही रूझान
अब भी संभल के चल थोडा़ जाग जा ऐ इंसान
अब भी जो न जागा तो सहना होगा कष्ट
तेरा ये सब आशियां , हो जाएगा नष्ट।