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संजय असवाल "नूतन"

Tragedy

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संजय असवाल "नूतन"

Tragedy

उसका यूं चले जाना

उसका यूं चले जाना

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वर्षों बरस बीत गए,

उसके यूं चले जाने के बाद

मैं आज भी खुद को तन्हा पाता हूं, 

सरे राह में खुद को ठगा पाता हूं,


वो मुझसे मेरा बहुत कुछ छीन ले गया,

और मैं उसकी उम्मीद में राह तकते तकते,

इसी ख्याली में जिए जा रहा था

कि छोटी सी बात थी,

जिस पर यूं रूठना लाजमी ना था उसका,


उम्मीद थी मुझे कि वो लौट आयेगा

आगोश में आकर दिल फिर एक हो जाएगा

पर वो ना आया, ना आई उसकी कोई खबर, 

मैं इसी उम्मीद में तकता रहा ताउम्र उसे,


कि वक़्त मिलेगा मुझे तो पूछूंगा उससे,

कि क्या वजह थी यूं चले जाने की,

मेरी उम्मीदों के दामन को ठुकराने की,

पर समय पंख लगा के कुछ यूं फुर्र उड़ गया,


और वो मुलाकात जिसमें

जुदा हुईं थी राहें हम दोनों की,

जैसे कल की बात हो गई।

उम्र के इस अंतिम पड़ाव में 


सुना है वो मेरे शहर फिर से लौट आया है,

एक लम्बी चौड़ी दरख्वास्त खुद में समेटे,

पश्चाताप की पोटली संग लाया है,

और आंसुओं का सैलाब,

उसे देखते ही मेरे अंदर ही अंदर

कुछ इस कदर बह चला

जैसे दिल के सारे गम धुल गए हो,

अब ना कोई टीस रही मन में, 


ना शिकवा शिकायतें रही उससे,

चलो शुक्र है,

अब चैन से मर सकूंगा मैं।


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