वसुधैव कुटुंबकम् --
वसुधैव कुटुंबकम् --
अंतरतम से पूछो
अंतरतम में झांको
निकलेगी बस "ध्वनि"एक
वसुधैव कुटुंबकम्--
ईश्वर , अल्ल्लाह, वाहेगुरु
भेद नहीं सब "एक" है
"जात-पात" मज़हब" को ले
फिर क्यूं "खून खराबा है ये
"धरा एक" आकाश" एक"
हम क्यों होते हैं छिन्न -भिन्न
रंग एक, दर्द एक , प्रीत एक
" लहूं " रंग है। सबका लाल
बनों "वृक्ष " से दानवीर
खुद भूखा रह फल देता
"बादल" से बन जाओ तरल
खुद भूखा रह , बरस पड़ो
लहराती नदियां बन जाओ
"खुद" प्यासी रह बहती जाओ
"पुष्प" बनों। महकाओ जंग को
" खुद" रह जाएं वंचित महक से
मलयाचल से चले "पवन"
दे शीतलता हर जन को
"उर्जित" करें रवि। सबको
क्या छुपता वो "नभ" में कभी
"दीपक-बाती" से जलकर
"तम" हरकर उजियारा करदो
"चंदा" बन बिखरा दो चांदनी
करदो " दुग्धमय " कण कण को
"धरा" अकेली बोझ सहे
वैसा अपना जीवन करलो
बन जाओ तुम "निशा सांवरी"
" खुद" जागो ,सबको सुलाओ
""मूर्तिकार" अपनी छैनी से
गढ़ता अनगिनत सुंदर "मूरत"
"खुद" को वो कभी ना गढ़ता
देख देख होता ही गदगद
ईर्षा ,घृणा , का करो "दफन"
संकल्प, प्रतिज्ञा,कर हो "एकाकार"
जड़ चेतन में जब " ब्रह्म" एक है
क्यों। फंसते हो तेरे मेरे जाल में
हर प्राणी में ईश्वर एक है
सारी दुनिया एक" परिवार "
"वसुधैव कुटुंबकम्" मंत्र जाप कर
बढ़ते जाओ कदम ,कदम -++