बनों "वृक्ष " से दानवीर खुद भूखा रह फल देता "बादल" से बन जाओ तरल खुद भूखा रह , बरस बनों "वृक्ष " से दानवीर खुद भूखा रह फल देता "बादल" से बन जाओ तरल खुद ...
जैसे जैसे मैं बड़ी होती गई मुझे अपनी मातृभाषा हिंदी से प्यार होता गया । जैसे जैसे मैं बड़ी होती गई मुझे अपनी मातृभाषा हिंदी से प्यार होता गया ।
कितना भी तराशो, पत्थर तो रहेगा पत्थर कहाँ बोलेगा वह कभी हंसकर या झुककर। कितना भी तराशो, पत्थर तो रहेगा पत्थर कहाँ बोलेगा वह कभी हंसकर या झुककर।