'वसुधैव कुटुम्बकम्'
'वसुधैव कुटुम्बकम्'
चैन ओ सुकूँ से रहें सब यहाँ,
हम सब की ये जिम्मेदारी है।
खूब हुआ मित्रो! खून खराबा,
अब सुनो अमन की बारी है।
जात-पात के भर्म को तोड़,
एक-एक को गले लगाते चलें ।
सबको साथ में लेकर यहाँ,
कदम से कदम बढ़ाते चलें।
रोड़ा बनती इन रंजिशों को,
मिल बैठ कर हम सुलझाएँ।
उन्नति के उज्ज्वल पथ पर,
अविराम आगे बढ़ते जाएँ।
कौन अपना और कौन पराया,
इस मन के मैल को जरा मिटाएँ।
'वसुधैव कुटुम्बकम्' भारत की,
यह पुण्य परम्परा आज निभाएँ ।।
