STORYMIRROR

Anil Jaswal

Abstract

1  

Anil Jaswal

Abstract

वरगद की छांव।

वरगद की छांव।

1 min
139

बरगद का पेड,

चलने वाला पेड़ भी है नाम,

एक बार कहीं उगे,

स्वयं विस्तार करे,

एक तने से सैंकड़ों तने बने,

ये साम्राज्यवाद की निशानी लगे,

अनेकों खोमेचेवाले, ठेले वाले, मुसाफिर,

इसकी छांव में आराम करें,

इन बनियों को देख,

बैनयन नाम धरा,

मुंबई स्टाक एक्सचेंज भी वरगद की छांव में शुरू हुआ,

सिकंदर की फौज का किया था बारिश से बचाव,

इसको गांव का बड़ा बुजुर्ग भी कहा जाता,

हर कोई इसको प्रणाम किए बिना न निकले,

इससे कोई सीखे,

कैसे जमीन में गहरी जड़ें रखे,

और फिर हर तरफ बढ़े।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract