# वृद्धावस्था में प्रेम संबंध
# वृद्धावस्था में प्रेम संबंध
थी वह अकेली जीवन के सफर में
# रोज निकलती थी सुबह की सैर में
बैठती थी रोज़ पार्क के कोने मेंं
नजर टिकी एक श्याम सलोने में
देखती थी रोज एक टक वह उन्हें निहार कर
चली जाती कदम आहट को अपने सुना कर
बेखबर वह भी ना थे इन मोहतरमा के अदांंज़ से
सुन रहे थे वह रिदम जो बज रही थी दिलो साज़ मेेंं
एक दिन मिल गई दोनों की निगाहें..
एक हो गई जो अलग थी दोनों की राहें
बढ़ने लगी धीरे-धीरे दोनोंं की मुलाकातें
हाथ पकड़ कर मिलते वह आते जाते
एक दिन भी मिले बिना ना वह रह पाते
आखिरकार निश्चय किया दोनोंं ने
बंँध जाएंँगेेे विवाह के पवित्र बंधन में
बन गए प्यार के जीवनसाथी
अब मिला दोनों को जीवन आकार
दोनों ने किया प्रेम सपने को साकार।