वृद्धा
वृद्धा


जिंदगी में किस तरह,
सुकूं की जुदाई होती है।
लोगों के बीच सिर्फ,
अपनी तन्हाई होती है।।
जहां मेरा कोई नहीं वहां
जाने का दिल करता है,
आज भीड़ में भी बेचैन,
हवाओं की परछाईं होती है।।
न शिकवा न शिकायत,
न परेशान करने की कोई,
अब आजमाईश होती है।।
हाल क्या है मेरे उम्र का,
चस्मे डंडे से तुम पूछ लो,
बेबस लाचार सी जिंदगी में,
पेट पीठ एक की दुहाई होती है।।
दर्द, सिकस और बेबस की,
अब कहां मुझसे रुसवाई होती है।।
जिंदगी में किस तरह,
सुकूं की जुदाई होती हैं।।