स्त्री
स्त्री
तुम क्या हो ?
तुम हो जीवन का आधार,
तुम नहीं पृथ्वी का भार।
तुम तो समाज का दर्पण हो,
तुम तो प्रेम भाव समर्पण हो,
तुम नीरस नहीं, उज्ज्वल हो।
तेरे ही आने से तो होता है,
जीवन में सबके उद्दगार।
तुम बेटी हो, तुम पत्नी हो,
तुम माता हो ,तुम दादी हो,
तुम ही तो हो सब रिश्तेदार।
तुम दुःख को दुःख न समझती हो,
तुम तो संघर्ष हमेशा करती हो,
फिर तुम क्यूँ होती लाचार,
तुम्हीं तो हो सृष्टि का पालनहार।
तेरे में वे हर रूप दिखे हैं,
जिसका जिसमें है संसार।
तुम मानवता की देवी हो,
तुझमें ही है अपना प्यार।
तुझमें ही है अपना प्यार.....(२)