वरदान या अभिशाप ?? कोरोना ???
वरदान या अभिशाप ?? कोरोना ???
मैंने महसूस किया बेहद क़रीब से
तुम्हारा प्यार, देखभाल।
बेशक मैं जानता था,
तुम्हारा नाम, चेहरा, पदनाम,
कुछ सूट भी याद थे तुम्हारे।
बिन्दी का रंग भी शायद मैं बता देता।
एक रूप सबसे प्यारा जो छिपा हुआ था,
या मैंने जिस पर ध्यान ही नहीं दिया कभी।
कोरोना के इस काल में, प्यारा सा वो रूप,
देखभाल करने वाली माँ का,
सुबह से शाम तक, तुम्हारे साथ रहना
एक वरदान सा।
कुछ सुन कर, कुछ बिना सुने हूँ हाँ करना,
कभी ख़त्म न होने वाली बातों का सिलसिला।
तुनक कर चुप हो जाना कभी कभी,
खिलाना फिर मनुहार से।
कोरोना न होता तो शायद,
तुम्हें जाने बिना विदा, हो जाता संसार से।

