Revolutionize India's governance. Click now to secure 'Factory Resets of Governance Rules'—A business plan for a healthy and robust democracy, with a potential to reduce taxes.
Revolutionize India's governance. Click now to secure 'Factory Resets of Governance Rules'—A business plan for a healthy and robust democracy, with a potential to reduce taxes.

वक़्त बदला या इंसान

वक़्त बदला या इंसान

1 min
213


बाबा मेरी ऊंगली पकड़ो ना,

कहीं गिर ना जाऊँ खाकर ठोकर,

क्यों गिरोगे तुम, मैं तुम्हें गिरने ही नही दूँगा

थाम कर हाथ तुम्हारा, जिंदगी भर चलूँगा।


बाबा मुझे वो खिलौना चाहिए,

दिला दो ना वरना मैं रो दूँगा,

ऐसा वक़्त आया जब आँसू तुम्हारे निकले,

तो मैं खुद को खो दूँगा।


मेरी जिंदगी की मेहनत तुम्हारे लिए है,

तुम्हारे लिए तो मैं अपनी

ख्वाहिशों से भी दगा कर दूँगा।


बेटा वक़्त ने बेबस कर दिया मुझे,

अब ये शरीर जर्जर हुआ है,

तुम मुझे छोड़ कर ना जाना,

वरना मैं जी नही पाऊँगा।


मेरे पास वक़्त नहीं है कि

आपके लिए मैं समय बर्बाद करूँ,

बहुत कुछ करना है मुझे अपने बच्चों के लिए,

ना कर पाया तो खुद को क्या कहूँगा।


सच ही कहा है किसी ने

पिता बनकर जो जन्नत तुम लुटाते हो,

वही खाकर ठोकरें बुढ़ापे में जिल्लतें उठाते हो।


वक़्त तो वही होता है,

पर इंसान बदल जाता है,

कभी उंगली थामकर हम

जिन्हें स्कूल छोड़ने जाते हैं,

वही हाथ हमें बुढ़ापे में

आश्रम तक ले आते हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics