STORYMIRROR

aazam nayyar

Abstract

4  

aazam nayyar

Abstract

वफ़ा

वफ़ा

1 min
396


किसी से यहाँ हम वफ़ा कर चले 

वफ़ा प्यार की हम सदा कर चले 


चले फ़ासिली फेरकर रोज़ मुंह 

वही कल निगाहें मिला कर चले 


छुड़ाकर मगर हाथ मुझसे वही 

मुझे आज वो ही रुला कर चले


कभी प्यार से वो गले कब लगे 

वही ख़ूब मुझको सता कर चले 


दिया कब मुझे फूल है प्यार का 

बहुत प्यार में वो जफ़ा कर चले 


मिली है दग़ा हर क़दम पर मुझे 

वफ़ा प्यार रिश्ता निभा कर चले 


नहीं बात माना अड़ा जिद पर है 

उसे ख़ूब "आज़म" मना कर चले।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract