वो
वो
वो वक्त बन के गुजर गया,
वापस ना आने के लिए।
कुछ बातें रह गई अधूरी,
दुनिया को बताने के लिए।
तिरंगे में लिपटा वो ऐसे,
छोड़ गया सबको सताने के लिए।
जिद्द थी "बलिदान होऊंगा साथियों के साथ"
चल गया वो अपना फ़र्ज़ निभाने के लिए।
मां भारती का कर्ज था उसका जीवन,
लड़ता रहा अंतिम सांस तक चुकाने के लिए।
मरने के ख्याल को भी मार दिया उसने,
जब मौत आई थी उसको ले जाने के लिए।
शौर्य या वीरगति, यहीं था उसका जीवन,
वो चलता रहा अग्निपथ पर, हमें जिताने के लिए।
हार गया वो अपना आने वाला कल,
हमारे आज को सजाने के लिए।
एक भाई, एक बेटा, चला गया फिर से,
भारत मां की आन बचाने के लिए।
