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Raashi Shah

Abstract

5.0  

Raashi Shah

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वो......थी!

वो......थी!

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रहते हैं हम इक्कीसवी सदी(21st century) में,

कह सकते है इसे ‘Social Media’ का ज़माना,

यहाँ वक़्त तो जैसे,

बस हो जाता है, झट से कहीं रवाना,

यहाँ न वक़्त हमारे लिए रुके,

न हम उसके लिए रुकते हैं,

क्या हमारे पास इतना भी वक़्त नहीं,

कि दो क्षण रुककर​, किसी भूली हुई वस्तु को,

फिर स्मरण करते है?

एक ऐसी चीज़ है वो -

वो कागज़ का टुकड़ा,

जो बहुत छोटा-सा होकर भी,

क​ई बड़ी-बड़ी बातें समझा जाता है,

और कभी बहुत बड़ा होकर भी,

बार​-बार वही चीज़ दोहराता है।

वो कागज़ का पन्ना,

जिसपर चंद शब्दों के माध्यम से,

अपनी अनेक भावनाएँ व्यक्त कर सकते हैं।

वो कागज़ का पन्ना,

जिसके आने से लोगों के मुख पर​,

उत्साह​, गम​, क्रोध​, चिंता, खुशी जैसे भाव आते थे।

वो कागज़ का पन्ना,

जिसे हम चिट्ठी कहते है।

ऐसी ये चिट्ठी,

जिसे लोग आज भी लिखते है,

वो Whatsapp पर लिखी Message-रूपी चिट्ठी,

जिसे लिखते तो हम रोज़ हैं;

लेकिन कभी चिट्ठी की नज़र से देखते नहीं।

फिर भी अवश्य कहूँगी मैं ये,

कि क्या दिन थे वे,

जब लोग अपने हाथ से, अपनी चिट्ठी लिखते,

और चिट्ठी पढ़नेवाले, बेसबरी से उसके आने का इंतज़ार करते थे,

 वो क्या दिन थे जब​ वो चिट्ठी थी!....


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