STORYMIRROR

Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

4  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

वो तेरा

वो तेरा

1 min
377

वो तेरा हमें देखकर मुस्कुराना

नज़रें मिल जाने पर नज़रें चुराना

मुलाकात हो जाने पर यूं ही,

दांतो तले उंगली दबाना

क्या यही प्यार है


आज भी याद आती है,

तेरी वो बातें

वो तेरा बातों में प्यार छिपाना

जब भी हम न दिखे,

वो तेरा बेसब्री से नज़रें घुमाना

क्या यही प्यार है


याद आते है,वो लम्हे जब,

वो तेरा स्टेटस पर मेरा नाम,

लिखना और मिटाना

शीशे से ख्वाबों में तेरा आना

आईना देख फ़िर तोड़कर चले जाना

क्या यही प्यार है


वो तेरा पलकों को भिगोना

फिर आंसूओ से यह कह जाना

भूल जाओ उन्हें

वो तेरा झूठ भी हमें लगता है,

सच का एक अफ़साना

दर्द देना ही था

तन्हा करना ही था


वो क्या झूठा था तेरा

प्यार का गाना

क्या यही प्यार है

दिल भूल सकता

उनका प्यार है


बहुत याद आता है,

वो तेरा दिल पर तीर चलाना

क्या यही प्यार है

दिल पर बिना बात ही

कर दिया वार है


बहुत याद आता है,

वो तेरा क़त्ल कर,मुस्कुराना

क्या यही प्यार है

दिल को किया,

तूने यूं ही निसार है

बहुत याद आता है


तस्वीर पर तेरा वो 

फूलों कस हार चढ़ाना

क्या यही प्यार है


हुस्न ने सदा ही किया

अत्याचार है

वो ख़ुदा ही जाने

हम तो है अनजाने,

बहुत याद आता है


तेरा वो हमारे दिल को सताना

क्या यही प्यार है

जिस्म क्या

रूह के भी पार हो जाता प्यार है

बहुत याद आता है,साखी,

वो तेरा हमारी रूह में मिल जाना


क्या यही प्यार है,ख़ुदा

जवानी क्या

वो तेरा बुढ़ापे में भी साथ निभाना

बहुत याद आता है,


वो तेरा सांसों से पहले,

आना और जाना 

क्या यही प्यार है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract