वो स्त्री
वो स्त्री
वो स्त्री, जो किसी पिता के
दिल का टुकड़ा है,
अपने प्रियतम के लिए
चाँद का मुखड़ा है।
अपने बच्चों का सहारा है,
प्रेम की नदी का एक किनारा है।
हाँ, वो स्त्री ही तो है।
वो जो लक्ष्मी का स्वरुप है,
जो सर्दी में खिली हुई धूप है।
जिसका सौन्दर्य अनूप है,
उसके बिना सृष्टि एक कूप है।
हाँ, वो स्त्री ही तो है।
सरस्वती का ज्ञान है,
समाज का सम्मान है।
देश की शान है,
पुरुषत्व की जान है।
हाँ, वो स्त्री ही तो है।
दुर्गा की शक्ति है,
मीरा की भक्ति है।
रज़िया का ताज है,
वहीं भजन वहीं नमाज़ है।
हाँ, वो स्त्री ही तो है।
लेकिन कुछ वहशी दरिंदें है,
बेशर्म परिंदें है।
इंसानियत के गले में फंदे है,
बड़े काले इनके धंदे है।
वो स्त्री को नोंच खाते है,
समाज में कलंक बन जाते है।
तो हम लड़कियों को ही क्यों
समझाते है,
कि रात को बाहर नही आते-जाते है।
हाँ, वो स्त्री ही तो है।
हम सब को जागना होगा,
न्याय के लिए भागना होगा।
कुरीतियों को मारना होगा,
ग़लतियों को मानना होगा।
स्त्री सम्मान सर्वोपरि है,
आ गयी फ़ैसले की घड़ी है।
लड़ाई इस बार आर-पार की,
न कि जीत न कि हार की।
राम राज्य में फ़ातिमा मुस्कुरा उठे,
ख़ुदा के डर पर राधा खिलखिला उठे।
क्योंकि हमारे में उसका आधा अंग है,
उसके होने से ही तो जगत में रंग है।
हाँ, वो स्त्री ही तो है।
