वो मर्द नहीं
वो मर्द नहीं
देखकर माँ-बाप के आंसू जिन आँखों में दर्द नहीं होता
अपनों का ठंडा बदन भी छूकर दिल उसका सर्द नहीं होता
पीकर जब वो घर आता है बच्चे भी दुबकते कोने में
औरत पर जो हाथ उठाये वो सच में मर्द नहीं होता
जो खुशियों में साथ रहे और ग़म में किनारा करने लगे
वो इंसान मतलबी तो होता है पर हमदर्द नहीं होता
जिसके सर पर सदा दुआयें होती हैं बड़े-बुजुर्गों की
कितना हो घर से दूर मगर वैभव वो फ़र्द नहीं होता।
