वो मिल जाएं
वो मिल जाएं
मैं भी कितनी पागल थी
उनसे भी लड़ जाती थी
हाथा पाई जब कर लेती
बाहों में शर्माती थी।।
उनके हाथों का छूना
मैं भूल नहीं पाई अब तक
वैसा ही महसूस करूं मैं
न जाने पगली कब तक।।
यादों का झुरमुट ले बैठी
लूका छीपी खेल रही
गलत करू या सही न जाने
प्यार में उनके मैं तो बही।।
एक बार मुझको मिल जाएं
झुलसे पुर्जे फिर खिल जाएं
हाथ पकड़ लूं उनका फिर से
पांव शर्म से फिर हिल जाएं।।