आहिस्ता आहिस्ता
आहिस्ता आहिस्ता
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नहीं मानता उन लकीरों को
जो कहती है तुम मेरी नहीं हो
यकीं तो उस शिद्दत ए मोहब्बत पर है
जो कहती है कि तुम किसी और की नहीं
न इज़हार में बेसब्री कीजिए
न इकरार सुनने को बेकरार हुआ कीजिए
ये इश्क़ भी हिना सा होता है साहिब
इसके रंग को आहिस्ता आहिस्ता चढ़ने दीजिए
तुम्हे.....छुप छुप कर देखना अच्छा लगता है
तुम्हारी यादों के सुरूर में बहकना अच्छा लगता है
लोग चाहे हमे दीवाना कहता रहे
तुम्हारे लिए खुद के वजूद को खो देना अच्छा लगता है!!