बड़ा धीमा वो इनकार था
बड़ा धीमा वो इनकार था
छुपा था वो दिल में पर धीमा सा इनकार था;
यूँ छुप छुपकर मुझे करना उसका दीदार था !
ताउम्र रहे साथ मगर दिल न मिला दिल से ;
अब कैसे कहूँ मैं कि वो मेरा पहला प्यार था!
उलझा रहा सारा जीवन रिश्तों में अब तक ;
चोरी चोरी दिल का वो दिल से सरोकार था !
एहसास हुआ बरसों के बाद हमें अपनेआप ;
हम दोनो के दिल का वो ग़लत तकरार था !
हम से तो गुनाहे-उल्फ़त भी हो न सका कभी ;
दिल ने चुना जिसे वो इश्क का गुनहगार था !
मजबूर किया होगा उसके दिल को दुनिया ने ;
मैं कैसे कहूँ उसको कि फकत वही मेरा दिलदार था!
मतले से मक़ते तक हमने की दिल की बात ;
पर हम ये कैसे मान लें कि वो मेरा इज़हार था।
~V. Aaradhyaa