सगीर की गजलें
सगीर की गजलें
तिरी आंख को जब हम नम देखते है।
फिर तो सारे जमाने का गम देखते हैं।
अपना पराया है किस से कहें हम।
सभी के सितम और करम देखते हैं।
जिसकी तसव्वुर में रहते हैं हरदम।
सामने मेरे रहते हो तो कम देखते हैं।
तुम्हारी हंसी तो सभी देखते हैं।
हम तो उसमें छुपे रंजो गम देखते हैं।
तुम्ही से मोहब्बत तुमही से शिकायत।
तुम ही से खुशी और गम देखते हैं।
मजहब सिखाता है इंसानियत को।
मगर लोग फिर क्यों धरम देखते हैं।
सभी की खुशी में है खुशियां हमारी।
सभी के हम रंजो अलम देखते है।
*सगीर* मेरे रब की बड़ी मेहरबानी।
सभी मेरे शेअरों में दम देखते हैं।