वो मासूम दोस्ती...
वो मासूम दोस्ती...
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
कहने को तो इस दुनिया में,
रिश्ते हैं, बेशुमार बहुत,
पलकों के साये में पलते है,
संबोधन के हार बहुत,
कुछ छूटा है लेकिन पीछे भी कहीं,
जिस रिश्ते का कोई मोल नहीं
कुछ फासला तय कर यादों का,
इक बार ज़रा पीछे जाये
वो मासूम दोस्ती... फिर से सहेज लाएं ।।
सुदामा-कृष्ण की जोड़ी थी,
मन में तनिक भी स्वार्थ न था
असीम प्रेम था जीवन में,
कम होते हुए अभाव न था,
कुछ पल निकाले फुर्सत के,
आओ एक बार फिर मिल जायें
>वो मासूम दोस्ती...फिर से सहेज लाएं।।
भोला बचपन भी देखो,
हमको फिर से बुलाता है,
उतार दो ताज बड़प्पन का
ये कहता हुआ, मुस्काता है,
माटी की गोद में आओ फिर,
हम खेले, दौडे, हर्षायें
वो मासूम दोस्ती...फिर से सहेज लाएं।।
इस बार जो कभी फिर मिलना हो
हो बात ही क्या, जो पुराने खेल ना हो,
तरुवर की घनी छाया में,
यादों का बहता झरना हो ,
दामन थामें एक-दूजे का,
हम दूर कहीं निकल जाये,
वो मासूम दोस्ती...फिर से सहेज लाएं।।