वो हुनरदार बहुत है
वो हुनरदार बहुत है
आँखों में अभी शोख के इनकार बहुत है
मेरी ही तरह वो भी तो ख़ुद्दार बहुत है
खाई है सदा हार तो मैंने भी उसी से
वो बात पलटने में हुनरदार बहुत है
हर बार मनाता हूँ मैं यूँ रूठे सनम को
दिल उसकी अदाओं का परिस्तार बहुत है
करता ही नहीं उसकी जफ़ाओं की शिकायत
यह दिल तो उसी का ही तरफ़दार बहुत है
इस दिल के समुंदर को तू लूटेगा भी कितना
इसमें तो भरा तेरे लिए प्यार बहुत है
मैं उसको भुलाने का जतन कैसे करूँगा
वो शख़्स मेरे दिल पे असरदार बहुत है
अब तेज़ बढ़ाने हैं क़दम आप को *साग़र*
इस दौर के इंसान की रफ़्तार बहुत है।

