वो चाय मोहब्बत वाली .....
वो चाय मोहब्बत वाली .....
तुम्हें याद है ......
वो पहली- पहली बार हमारा
चाय शाप में मिलना ?
ना था ... कोई शब्दों का सिलसिला,
हम दोनों में बहुत देर -तलक ,
मन के किसी कोने में थी उलझन कोई ,
धीरे-धीरे ख़ामोशियाँ लफ़्ज़ों की ,
गुनगुनाने ..... सी लगीं।
फिर हौले हौले से,अल्फाज तुम अपने ..
कप में मेरे गिराकर
देखकर मेरी ओर
धीमे से ...मुस्कुरा रही थीं ।
रूह के तार जुड़ने लगे ,
ख़ामोशियाँ फिर मचलने लगीं,
चाय की महक में घुल गये ,
कुछ अनकहे अहसास ....
सिमटने लगे अनजाने से ख़्वाब
देखा जब शोख़ निगाहों में ।
भूल आई थीं तुम ,
अपनी सासें मेरे होंठों पर
और मैं अपनी रूह को ,
जिस्म में तुम्हारे छोड़ आया था।
ताउम्र ना भूलेगी .. ..
जब साथ मिलकर पी थी ,
वो चाय मोहब्बत वाली
पहली -पहली बार ।