वो चांद अकेला
वो चांद अकेला
वो चांद,जो रहता है अकेला
ढूंढता नहीं है दोस्तों का मेला,
ना है कतार कोई अपनों की,
संजोता यादें, सबके सपनो की,
रंग रूप लेता है रोज़ बदल,
हमराही बन साथ देता है चल,
गुमनाम अंधेरे की आगोश में पड़े,
काली सूनी सड़कों का वो साथी,
खिड़की से बाहर एकटक झांकती,
बेबस,लाचार अंखियों का वो साथी,
है हमदम वो तमाम तन्हा आशिकों का,
है मरहम अनसुनी,ज़ख्मी,दबी ख्वाहिशों का,
साथ चल निभाता जिम्मा हमसफ़र वाली,
पर अंत में अकेले ही काटता है ये रातें काली।