वो बूढ़ी स्त्री
वो बूढ़ी स्त्री
उम्र के अन्तिम पड़ाव पर तन्हा बैठी वो बूढ़ी स्त्री
मांगती है हमसे बस जरा सा वक्त
हमारे लिए ही खर्च कर दी उसने उम्र तमाम
उम्र के अन्तिम पड़ाव पर तन्हा बैठी वो बूढ़ी स्त्री
सुनना चाहती है बस प्यार भरे चन्द शब्द तुम्हें याद है ना!
उसने ही सिखाया था हमको हमारा पहला शब्द
उम्र के अन्तिम पड़ाव पर बैठी वो बूढ़ी स्त्री
खोलना चाहती है वो सारे राज आज फिर
जो दफन किये थे मन की कब्रगाह में हमारे ही लिये
उम्र के अन्तिम पड़ाव पर बैठी वो बूढ़ी स्त्री
देखना चाहती है थोड़ा सा सम्मान हमारी आंखों में
हमें बनाने में आखिर उसने खोया है खुद को
उम्र के अन्तिम पड़ाव पर बैठी वो बूढ़ी स्त्री
दे रही है टोकरे भर भर दुआएं और मांग रही है
बदले में केवल और केवल प्यार
उम्र के अन्तिम पड़ाव पर बैठी वो बूढ़ी स्त्री
सिखाना चाहती है जीवन के अनगिनत पाठ
और बांटना चाहती है वर्षों से संजोई अनुभवों की दौलत
उम्र के अन्तिम पड़ाव पर तन्हा बैठी वो बूढ़ी स्त्री
दिखाना चाहती है दर्पण ताकि हम जान सकें
एक दिन हमें भी पहुंचना है वहीं ....हां ठीक वहीं।
