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Vijay Kumar

Abstract Romance Tragedy

4.8  

Vijay Kumar

Abstract Romance Tragedy

वो भी बदल गया

वो भी बदल गया

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कभी मेरा हाथ थामे साथ चलकर

कभी मुझसे रूठते हुए बिछड़कर

वो भी तो बदल गया आखिर

मेरे जज्बातों को बदलकर,

                          

          कभी संग अपने सपने सुहाने दिखाकर

            कभी मेरे लिए अपनी फिक्र जताकर

                क्या उसका बदलना जरूरी था

              बस एक मजबूरी का नाम देकर,

कभी मन में जीने की चाह जगाकर

कभी संग मेरे अपने आंसू बहाकर

जाने वो कहा चला गया

मुझे इस तरहा बदलकर,

              कभी मुझे अपनी बांहों में भरकर

            कभी मेरे लिए दुनियादारी से लड़कर

  

;             क्यों आया था वो मेरे जिंदगी में

           जब जाना था उसे मेरे यादों में बसकर,

कभी मेरी वजह से डांट खाकर

कभी मेरे प्रति लोगों की धारणा बदलवा कर

सितारों की तरह आँखों से ओझल हो गया वो

मेरे जीवन में खुशियों के तमाम रंग भरकर,

                          

           कभी मेरे हौसलों में नई उड़ान भरकर

              कभी पेड़ों सा शीतल छांव देकर

          क्या वो यूं ही साथ नहीं चल सकता था

          मेरी अंतिम सांसो तक मेरी साँस बनकर,

कभी मेरा हाथ थामे साथ चलकर

कभी मुझसे रूठते हुए बिछड़कर

वो भी तो बदल गया आखिर

मेरे जज्बातों को बदलकर.


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