वो अजनबी अपने से लगते है
वो अजनबी अपने से लगते है
ये कैसी कश्मकश है,
कभी मंजिल करीब लगती है
कभी दूर-दूर तक
कहीं रास्ता नजर नहीं आता,
कुछ लोग अपने से लगते हैं
मिल जाए तो सब सपने से लगते हैं,
कुछ तो खासियत होती है इन रिश्तों में
यू ही नहीं जिंदगी का एक हिस्सा लगते हैं,
बीत जाए जो लम्हें, पुराने किस्से से लगते हैं
रूठने मनाने के सिलसिले अब अच्छे लगते हैं,
तुम्हारे लबों से निकले शब्द दिल में उतरने लगते हैं
आंखो में आशा के नए दीप जलने लगते हैं,
जब हो जाते है उदास वो आंखो से मोती बिखरने लगते हैं
पता नहीं क्यों एक अजनबी
मेरे जिंदगी के नए सपने लगते हैं
इस कदर वो अजनबी अपने से लगते हैं।

