वो आग बुझानी है
वो आग बुझानी है
दीपक बुझे - बुझे हैं ख़ुशी के,
दिल के सुकूं पर,
ख़ौफ़-ए-निगरानी है।
ख़ाक कर रही जो अमन–चैन,
वो आग बुझानी है।
जज़्बातों से न अब दिल ये पिघले,
ये इक माँ की बयानी है।
दहक रही जो नासाफ़ दिलों में,
वो आग बुझानी है।
बंदूकें हल नहीं किसी मसले का,
इसका तो सिर्फ अंजाम-ए-हैवानी हैI
भड़का रहे वो जो मासूमियत में,
वो आग बुझानी है।
ये अश्क पोंछ लो आँखों से,
अब ज़ूल्मों की रवानी है।
झुलस रहे जिसमें मंदिर-मस्जिद और आशियानें,
वो आग बुझानी है।